Sunday 19 April 2015

जब 21 भारतीय सैनिकों ने 10,000 घुसपैठियों को रौंद डाला



जब 21 भारतीय सैनिकों ने 10,000
घुसपैठियों को रौंद डाला
बहुत कम लोग विश्वास करेंगे कि सिर्फ 21
आदमियों की छोटी सी टुकड़ी दस हजार से
अधिक की फौज को रोक सकती है। लेकिन
इतिहास में ऎसा अक्सर होता है, चाहे वो दो
हजार वर्ष पूर्व स्पार्टा में लियोनायडस की
अगुवाई में 300 आदमियों ने किया हो या 1897
में 21 सिख सैनिकों ने। जी हां, 12 सितम्बर
1897 को अफगानिस्तान के तिराह में एक अद्भुत
लड़ाई लड़ी गई थी। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना
की एक छोटी सी टुकड़ी जिसमें सिर्फ 21
भारतीय सैनिक थे, ने दस हजार से अधिक अफगान
सेना को खैबर पख्तूनख्वा में सरगढ़ी की चौकी
पर रोक कर अपनी बहादुरी की मिसाल कायम
की थी।...
इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेज भारत में शासन
कायम करने के बाद आसपास के अन्य एशियाई
देशों पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश कर रहे
थे। इसी कोशिश में उन्हो ंने तत्कालीन गुलाम
भारत और अफगानिस्तान की सीमा पर अपनी
कई सैनिक चौकियां स्थापित की। इन
चौकियों पर छोटी-छोटी सैनिक टुकडियां
भी रखी जाती थी जो कि सी भी आपात
स्थिति को संभालने के लिए तत्पर रहती थी।
ऎसी ही एक चौकी पर 12 सितम्बर 1897 को 21
सिख सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी
हवलदार इसर सिंह के नेतृत्व में सीमा की
रखवाली कर रही थी। तभी सुबह के लगभग 9 बजे
दस हजार से अधिक की संख्या वाली अफगान
फौज ने चौकी पर हमला कर दिया। इस आक्र
मणकारी फौज में अफगान सैनिकों से साथ साथ
पख्तून तथा आफरीदी जनजातियां भी
शामिल थी। हमले का संकेत मिलते ही सरकार
गुरूमुख सिंह ने तुरंत पास ही स्थित ब्रिटिश
फौज को सहायता का संदेश भेजा जिस पर
उन्होंने तत्काल सहायता उपलब्ध कराने में
असमर्थता जताते हुए चौकी पर स्थित सैनिकों
को हमलावरों को आखिरी दम तक रोकने का
आदेश दिया।...
इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेज भारत में शासन
कायम करने के बाद आसपास के अन्य एशियाई
देशों पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश कर रहे
थे। इसी कोशिश में उन्हो ंने तत्कालीन गुलाम
भारत और अफगानिस्तान की सीमा पर अपनी
कई सैनिक चौकियां स्थापित की। इन
चौकियों पर छोटी-छोटी सैनिक टुकडियां
भी रखी जाती थी जो कि सी भी आपात
स्थिति को संभालने के लिए तत्पर रहती थी।
ऎसी ही एक चौकी पर 12 सितम्बर 1897 को 21
सिख सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी
हवलदार इसर सिंह के नेतृत्व में सीमा की
रखवाली कर रही थी। तभी सुबह के लगभग 9 बजे
दस हजार से अधिक की संख्या वाली अफगान
फौज ने चौकी पर हमला कर दिया। इस आक्र
मणकारी फौज में अफगान सैनिकों से साथ साथ
पख्तून तथा आफरीदी जनजातियां भी
शामिल थी। हमले का संकेत मिलते ही सरकार
गुरूमुख सिंह ने तुरंत पास ही स्थित ब्रिटिश
फौज को सहायता का संदेश भेजा जिस पर
उन्होंने तत्काल सहायता उपलब्ध कराने में
असमर्थता जताते हुए चौकी पर स्थित सैनिकों
को हमलावरों को आखिरी दम तक रोकने का
आदेश दिया।...
इस पर चौकी पर मौजूद सभी सैनिकों ने ठान
लिया कि जब तक हममें से एक भी सिपाही
जिंदा है चौकी पर अफगान सेना का कब्जा
नहीं होने देंगे। शुरूआत में अफगान सेना ने उन
सैनिकों को आत्मसमर्पण करने और सुरक्षित जाने
देने के लिए कहा, जिसे उन्होंने स्पष्ट मना कर
दिया। इसके तुरंत बाद युद्ध शुरू हो गया। जल्दी
ही चौकी को अफगानियों ने ढहा दिया
जिसके बाद सीधा आमने-सामने का युद्ध शुरू हो
गया। सिख सैनिकों ने बोले सो निहाल, सत
श्री अकाल कहते हुए लड़ना शुरू कर दिया। कुछ
ही घंटों में सभी भारतीय सैनिक मारे गए।
लेकिन तब तक ब्रिटिश फौज पास ही स्थित
दूसरी चौकी पर पहुंच चुकी थी जिससे अफगान
सेना अन्य चौकियों पर कब्जा नहीं क र सकी
और उसे वापिस भागना पड़ा।...
13 सितम्बर को जब ब्रिटिश सेना सरगढ़ी
पहुंची तो उसे वहां 21 भारतीय सिपाहियों के
साथ 600 से भी अधिक अफगानी सैनिकों के मृत
शरीर पड़े थे। बाद में जांच में पता चला कि इन
600 सिपाहियों के अलावा कई हजार अफगान
सैनिक भी बुरी तरह घायल हो गए थे जिसके चलते
अफगान सेना को वापिस लौटना पड़ा। इन
सभी सैनिकों को मरणोपरांत ब्रिटिश शासन
द्वारा इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान दिया
गया जो वर्तमान के परमवीर चक्र से समकक्ष है।
इन सैनिकों की याद में आज भी भारतीय सेना
की सिख रेजीमेंट सरगढ़ी डे मनाती है।
Source : m.archive.patrika.com/…/battle-of-saragarhi-when-21-…/51919…

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