Sunday 19 April 2015

घनश्याम जी - आंखें बंद, हाथ-पैर पोलियोग्रस्त फिर भी अपनी कमाई से बनवाया मंदिर


घनश्याम जी - आंखें बंद, हाथ-पैर पोलियोग्रस्त फिर भी अपनी कमाई से बनवाया मंदिर
लोग छोटी सी समस्या आने पर हिम्मत हार लेते हैं या मुंह मोड़ लेते हैं, लेकिन घनश्याम सेन संघर्ष का जीता जागता मिसाल है, जिसने बहु-विकलांगता को पीछे छोड़ गांव के लोगों को आस्था से ऐसे जोड़ा कि लोग मंदिर पहुंचते ही उन्हें याद करते हैं।
जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर ग्राम अरौद (ली) निवासी घनश्याम सेन (22) पिता लच्छूराम सेन की आंख में बचपन से रौशनी नहीं है। हाथ व पैर पोलियोग्रस्त है। अपनी विकलांगता के चलते वह एक अक्षर भी पढ़ाई नहीं कर पाया। फिर भी घनश्याम ने जिंदगी से हार नहीं माना। 15 वर्ष की उम्र में टीवी, रेडियो, देवी मंदिरों के पास चलने वाले जसगीतों को सुनकर संगीत में रिहर्सल शुरू किया और बाद में जसगीत में दक्ष हुआ। घनश्याम के कंठ से सुआ नाचे सात बहनियां समेत कई जसगीत की धुन निकलती है, तो लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।
सुरीली आवाज और सुमधुर गीतों से प्रेरित होकर गांव के छात्र-छात्राओं ने मिलकर एक जसगीत पार्टी तैयार की और बहु-विकलांग घनश्याम की आवाज गांव से राजधानी तक पहुंच गई। कई मंचों में वह अपने आवाज का जादू बिखेर चुका है। हुनर से उसने हजारों रुपए कमाए। घर से मंदिर व मंदिर से घर जाने के लिए वह किसी पर आश्रित नहीं है। गांव के मोड़ व रास्ते का नक्शा उसके दिमाग में बैठ गया है। मंदिर का ताला आम लोगों की तरह पलभर में खोल देता है। दिनचर्या की सारी प्रक्रिया आसानी से कर लेता है।

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